कर्माबाई जी (Karma Bai)
कर्माबाई कौन थी? (Who Was Karmabai?)
गुरुजी बताते हैं की (Guru Says) – श्री भगवान तो भाव के भूखे होते हैं और अपने भक्त की पुकार पर दौड़ें चले आते हैं। ऐसी ही एक भक्त थी “कर्माबाईजी”
कर्माबाई जी जगदीशपुरी में रहती थी। वे भगवान को पूजने की रीतियों से अपरिचित थी परंतु अपने वात्सल्य और प्रेम पूर्ण भाव से नित भगवान को प्रातःकाल खिचड़ी का भोग लगाया करती थी और श्री भगवान जी स्वयं प्रकट होकर भोग पाया करते थे।
प्रभु के लिए उससे स्वादिष्ट भोग कुछ ना था। उनको तो कर्माबाई की खिचड़ी, मंदिर के छप्पन भोग से ज़्यादा प्रिय थी।
वैष्णव संत की शास्त्रीय विधियाँ (Religious Methods of a Vaishnav Saint)
कर्माबाई जी संतो की सेवा किया करती थी। एक बार वैष्णव संत (आचार्य) उनके यहाँ पहुँचे। आचार्य को उनका अरीति से पाठ-पूजा करना ठीक न लगा। कर्माबाई जी बिना स्नान, व चौका-बर्तन करे ही खिचड़ी बना रही थी। जो आचार्य के लिए अपराध करने जैसा था। उन्होने बड़े दुखी मन से कर्माबाई को सारी पूजा कि शास्त्रीय विधियों का ज्ञान बताया कि भोजन पवित्रता से बनना चाहिए।
उसके बाद कर्माबाई जी ने संत के बताए गए उपदेश का पालन किया। स्नान आदि में ही कर्माबाई को बहुत समय लग गया और भगवान उनकी अत्यंत स्वादिष्ट, प्रेम पूर्ण खिचड़ी का इंतजार करके चले गये। श्री जगन्नाथजी फिर उनके घर पर भोग पाने आए पर तब वे चौका-बर्तन साफ कर रही थी, इसलिए खिचड़ी बनाने में देर हो गई।
भगवान को इंतज़ार करता देख कर्माबाई ने जल्दी से खिचड़ी परोस दी। पर तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी। इधर जगन्नाथजी खिचड़ी ग्रहण कर ही रहे थे कि मंदिर से उनके लिए बुलावा आ गया। मंदिर का घंटा बजने लगा और भगवान बिना मुख साफ करे ही व पूरा भोजन ग्रहण करे बिना ही चल पड़े।
उनके मुख पर झूठन लगा देखकर पुजारी जी आश्चर्यचकित रह गए और उनसे पूछा- “प्रभु! आपके मुख पर ये खिचड़ी कैसे, कहिए आप कहाँ से खिचड़ी खा कर आए हैं?” भगवान के मुख पर खिचड़ी लगी देखकर, पुजारी जी चिंतित हो उठे और प्रार्थना करने लगे- “हे प्रभु! इस दृश्य को देखकर हमारी वाणी अवरुद्ध हो गयी है। हमसे कुछ कहा नहीं जाता। आज हमने यह नई बात देखी है कृपा प्रकट कीजिए।”
श्री जगन्नाथ जी बोले-“मेरी एक भक्त है कर्माबाई। मुझे वो अनन्य प्रिय हैं। वह नित प्रातःकाल खिचड़ी का भोग बड़े प्रेम से, बड़े भाव से मुझे अर्पण करती हैं। उसकी सच्ची भक्ति देखकर मैं नित उसके घर जाकर खिचड़ी पाता हूँ। परंतु एक संत वहाँ पहुँच गये और कर्माबाई को पूजा-पाठ की विधि बता आए। जबकि मेरी अनेक उपासना की विधियाँ हैं। इस रहस्य को जाने बिना जो उपासक की श्रद्धा को खंडित करता हैं; वह अन्याय करता है।”
संत शीघ्र ही कर्माबाई के घर पहुँचे और क्षमा याचना करते हुए बोले कि वो अपनी विधि से ही खिचड़ी बनाए, क्योकि उनकी विधि ही सर्वश्रेष्ठ है। जब तक कर्माबाई जी जीवित रहीं भगवान को भोग लगाती रही।
भगवान का भक्त के लिये ह्रदय द्रवित होना (The Lord’s Heart melted For His Devotee)
एक दिन मंदिर मे पुजारियों ने एक आश्चर्यजनक घटना देखी। उन्होने देखा की श्री जगन्नाथ जी की आँखों मे अश्रु थे। उनके कोमल नेत्रों से अश्रु धारा प्रकट हो रही थी। पुजारी भयभित हो गए और करुणा भरे स्वर से प्रार्थना करने लगे- “प्रभो! क्या हमसे कोई भूल हुई है? क्या हमने कोई अपराध किया है? जो आज जगत के पालनहार व सुखदाता के सुंदर नेत्रों में से आँसू आ रहे हैं। प्रभो! हमे क्षमा कीजिए।”
भगवान अपने भक्त को रोता नहीं देख पाए और तुरंत ही उत्तर दिया- “नहीं, ऐसा नहीं है। आज मेरी प्रिय भक्त की श्वासों की डोर टूट गई। वह मुझमें, मुझी को प्राप्त हुई परंतु अब मुझे नित्य प्रातःकाल खिचड़ी कौन खिलाएगा?”
कर्माबाई की खिचड़ी (The Khichdi of Karmabai)
तभी से वहाँ के राजा की आज्ञा से आज भी प्रातःकाल छप्पन भोग से पहले श्री जगन्नाथ जी को “कर्माबाई की खिचड़ी” के नाम से भोग लगाया जाता है।
जो श्री हरि को पूर्ण भक्तिभाव, प्रेम व श्रद्धा से भजता है तो भगवान ज़रूर अपने भक्त के पास आते हैं।
“कौन कहता है भगवान खाते नहीं, भोग कर्माबाई की तरह लगाते नहीं।”